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शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

जिन कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास - HISTORY OF JIM CORBETT PARK




कहा जाता है कि वे लोग बहुत सौभाग्यशाली होते हैं, जिन्हें अपने जीवनकाल में मां पूर्णागिरी के मंदिर के चारों ओर अद्भुत प्रकाश, मध्य रात्रि में दिखाई देता है। नैनीताल के लेफ्टिनेंट कर्नल एडवर्ड जेम्स कार्बेट (1875-1955) को मां पूर्णागिरी का यह आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। क्रिस्टिफर्ड विलियम कार्बेट के पुत्र थे जिम कार्बेट। विलियम 1862 से 1881 तक नैनीताल डाकखाने के पोस्टमास्टर रहे थे। वर्ष 1907 से 1939 के मध्य जिम कार्बेट ने कई आदमखोर शेर और गुलदार मारकर उत्तराखंड के हजारों गांववासियों को भयमुक्त किया। रातों रात सुनसान में अकेले जिस प्रकार वह इन नरभक्षियों के शिकार में बैठे रहते थे, यह उनके साहस का परिचय देता है। समाजसेवा में भी वह लिप्त रहते थे। पहाड़ी क्षेत्र विशेषकर छोटा हल्द्वानी गांव उनका ऋणी रहेगा। उनके लेखन कौशल ने उन्हें एक काल्पनिक व्यक्ति बना दिया और अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में भारत की लोकप्रियता बढ़ाई। इनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक 'मैन इटर्स आफ कुमाऊं' कालाढूंसी में लिखी गई थी और 1944 में ही इसकी दो लाख पचास हजार प्रतियां बिक गई थीं। 

अफ्रीका में कीनिया और तंजानिया जिन कार्बेट की बेहद पसंदीदा जगहों में से थीं। संभवत: वहां की कुमाऊं जैसी पहाडि़यां, अंग्रेजी और हिंदी बोलने वाले लोग, लाखों हिंदुस्तानी, भारतीय व्यंजनों का भंडार, विशाल मंदिर और गिरिजाघर उन्हें घर से दूर एक घर का अनुभव दिलाता था। वर्ष 1922 में उन्होंने अपने मित्र परसी विंदम के साथ मिलकर तंजानिया में एक संपत्ति खरीदी। वह अक्सर वहां जाते थे। जीवन भर वह और उनकी बहन मैगी अविवाहित रहे और एक साथ रहे। जिम कार्बेट जब 72 वर्ष के हो गए तो उन्हें भय लगने लगा कि उनकी मृत्यु के उपरांत मैगी की देखभाल कौन करेगा। उधर कीनिया में नियरी के पास उनके भतीजे जनरल टाम कार्बेट खेती करते थे। लिहाजा अपनी बहन के साथ जिम कार्बेट हिमालय से प्रस्थान करके कीनिया के ऐवरडेयर पहाड़ी में नियरी नाम के गांव में जा बसे। हालांकि दिल उनका अपने नैनीताल में रहा। कार्बेट पार्क रामनगर से लगभग 20 किलोमीटर आगे है। 

कालाढुंगी 

कालाढुंगी बेहद खूबसूरत जगह है, जिम कार्बेट इसी गांव में आकर बसे थे। यहां से नैनीताल मात्र तीस किमी. दूर है। 

बिजरानी में साइटिंग की व्यवस्था है। वहां ग्रासलैंड ज्यादा है और टाइगर तो ठंड से बचने के लिए उसी तरफ आते हैं। पार्क में तकरीबन 150 के आसपास ही टाइगर हैं, जिनमें से हाल ही में कुछ मर चुके हैं।

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