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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

यमुनोत्रीजी की ऐतिहासिक कथा और महत्व - YAMUNOTRIJI KI KATHA AUR YATRA MAHATVA



यमुनोत्री चार धामों मे से एक प्रमुख धाम है. यमुनोत्री हिमालय के पश्चिम में ऊँचाई पर स्थित है. यमुनोत्री को सूर्यपुत्री के नाम से भी जाना जाता है. और यमुनोत्री से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कालिंदी पर्वत स्थित है. जो अधिक ऊँचाई पर होने के कारण दुर्गम स्थल भी है. यही वह स्थान है जहां से यमुना एक संकरी झील रूप में निकलती है. यह यमुना का उद्गम-स्थल माना जाता है. यहां पर यमुना अपने शुरूवाती रूप मे यानी के शैशव रूप में होती है यहां का जल शुद्ध एवं स्वच्छ शीतल होता है.




                     यमुनोत्री

यमुनोत्री मंदिर : 

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी के राजा महाराजा प्रतापशाह ने बनवाया था. मंदिर में काला संगमरमर है. यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते हैं व कार्तिक के महीने में यम द्वितीया के दिन बंद कर दिए जाते हैं.
सर्दियों के समय यह कपाट बंद हो जाते हैं क्योंकी बर्फ बारी की वजह से यहां पर काम काज ठप हो जाता है.शीतकाल के 6 महीनों के लिए खरसाली के पंडित मां यमुनोत्री को अपने गांव ले जाते हैं पूरे विधि विधान के साथ मां यमुनोत्री की पूजा अपने गांव में ही करते हैं. इस मंदिर में गंगा जी की भी मूर्ति सुशोभित है तथा गंगा एवं यमुनोत्री जी दोनो की ही पूजा का विधान है.
यमुनोत्री वास्तविक रूप में बर्फ की जमी हुई एक झील है. यह समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद नामक पर्वत पर स्थित है. और इस स्थान से आगे जाना संभव नही है क्योकि यहां का मार्ग अत्यधिक दुर्गम है इसी वजह से देवी यमुनोत्री का मंदिर पहाड़ के तल पर स्थित है. संकरी एवं पतली सी धारा युमना जी का जल बहुत ही शीतल, परिशुद्ध एवं पवित्र  होता है और मां यमुना के इस रूप को देखकर भक्तों के हृदय में यमुनोत्री के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है.


यमुनोत्री पौराणिक संदर्भ :

 यमुनोत्री के बारे मे वेदोंउपनिषदों और विभिन्न पौराणिक आख्यानों में विस्तार से वर्णन किया गया है. देवी के महत्व और उनके प्रताप का उल्लेख प्राप्त होता है. पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है कहा जाता है की वृद्धावस्था के कारण ऋषि कुण्ड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया मे ही प्रकट हो गई. इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है. कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहते हैं.
एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से यमुना व यमराज पैदा हुए यमुना नदी के रूप मे पृथ्वी मे बहने लगीं और यम को मृत्यु लोक मिला कहा जाता है की जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है. किदवंति है की यमुना ने अपने भाई से भाईदूज के अवसर पर वरदान मांगा कि इस दिन जो यमुना स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े इस अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है.


सप्तर्षि कुण्ड :

यमुनोत्री में स्थित ग्लेशियर और गर्म पानी के कुण्ड सभी के आकर्षण का केन्द्र है. यमुनोत्री नदी के उद्गम स्थल के पास ही महत्वपूर्ण जल के स्रोत हैं सप्तर्षि कुंड एवं सप्त सरोवर यह प्राकृतिक रुप से जल से परिपूर्ण होते हैं. यमुनोत्री का प्रमुख आकर्षण वहां गर्म जल के कुंड होना भी है. यहां पर आने वाले तीर्थयात्रीयों एवं श्रद्धालूओं के लिए इन गर्म जल के कुण्डों में स्नान करना बहुत महत्व रखता है यहां हनुमान, परशुराम, काली और एकादश रुद्र आदि के मन्दिर है.

सूर्य कुंड :

मंदिर के निकट पहाड़ की चट्टान के भीतर गर्म पानी का कुंड है जिसे सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. यह एक प्रमुख स्थल है यहां का जल इतना अधिक गरम होता है कि इसमें चावल से भरी पोटली डालने पर वह पक जाते हैं और यह उबले हुए चावल प्रसाद के रुप में तीर्थयत्रीयों में बांटे जाते हैं तथा इस प्रसाद को श्रद्धालुजन अपने साथ ले जाते हैं.

गौरी कुंड :

गौरी कुंड भी महत्वपूर्ण स्थल है यहां का जल का जल अधिक गर्म नहीं होता अत: इसी जल में तीर्थयात्री स्नान करते हैं. सभी यात्री स्नान के बाद सूर्य कुंड के पास स्थित दिव्य-शिला की पूजा-अर्चना करते हैं और उसके बाद यमुना नदी की पूजा की जाती है जिसका विशेष महत्व है. इसके नजदीक ही तप्तकुंड भी है परंपरा अनुसार इसमें स्नान के बाद श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाते हैं.

यमुनोत्री के धार्मिक महत्व के साथ ही मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह प्रकृति की अदभूत भेंट है. यमुनोत्री चढ़ाई  मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है. मार्ग में स्थित गगनचुंबीबर्फीली चोटियां सभी यात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं.

इसके आस-पास  देवदार और चीड़ के हरे-भरे घने जंगल ओर चारों तरफ फैला कोहरा और पहाड़ों के बीच बहती हुई यमुना नदी की शीतल धारा मन को मोह लेती है यह वातावरण आध्यात्मिक अनुभूति देने वाला एवं नैसर्गिक सौंदर्य से पूर्ण है. भारतीय  संस्कृति में यमुनोत्री को माता का रूप माना गया है यह नदी भारतीय सभ्यता को महत्वपूर्ण आयाम देती है.



यमुनोत्री चार धामों मे से एक प्रमुख धाम है. यमुनोत्री हिमालय के पश्चिम में ऊँचाई पर स्थित है. यमुनोत्री को सूर्यपुत्री के नाम से भी जाना जाता है. और यमुनोत्री से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कालिंदी पर्वत स्थित है. जो अधिक ऊँचाई पर होने के कारण दुर्गम स्थल भी है. यही वह स्थान है जहां से यमुना एक संकरी झील रूप में निकलती है. यह यमुना का उद्गम-स्थल माना जाता है. यहां पर यमुना अपने शुरूवाती रूप मे यानी के शैशव रूप में होती है यहां का जल शुद्ध एवं स्वच्छ शीतल होता है.

यमुनोत्री मंदिर : 

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी के राजा महाराजा प्रतापशाह ने बनवाया था. मंदिर में काला संगमरमर है. यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते हैं व कार्तिक के महीने में यम द्वितीया के दिन बंद कर दिए जाते हैं.
सर्दियों के समय यह कपाट बंद हो जाते हैं क्योंकी बर्फ बारी की वजह से यहां पर काम काज ठप हो जाता है.शीतकाल के 6 महीनों के लिए खरसाली के पंडित मां यमुनोत्री को अपने गांव ले जाते हैं पूरे विधि विधान के साथ मां यमुनोत्री की पूजा अपने गांव में ही करते हैं. इस मंदिर में गंगा जी की भी मूर्ति सुशोभित है तथा गंगा एवं यमुनोत्री जी दोनो की ही पूजा का विधान है.
यमुनोत्री वास्तविक रूप में बर्फ की जमी हुई एक झील है. यह समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद नामक पर्वत पर स्थित है. और इस स्थान से आगे जाना संभव नही है क्योकि यहां का मार्ग अत्यधिक दुर्गम है इसी वजह से देवी यमुनोत्री का मंदिर पहाड़ के तल पर स्थित है. संकरी एवं पतली सी धारा युमना जी का जल बहुत ही शीतल, परिशुद्ध एवं पवित्र  होता है और मां यमुना के इस रूप को देखकर भक्तों के हृदय में यमुनोत्री के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है.


यमुनोत्री पौराणिक संदर्भ :

 यमुनोत्री के बारे मे वेदोंउपनिषदों और विभिन्न पौराणिक आख्यानों में विस्तार से वर्णन किया गया है. देवी के महत्व और उनके प्रताप का उल्लेख प्राप्त होता है. पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है कहा जाता है की वृद्धावस्था के कारण ऋषि कुण्ड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया मे ही प्रकट हो गई. इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है. कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहते हैं.
एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से यमुना व यमराज पैदा हुए यमुना नदी के रूप मे पृथ्वी मे बहने लगीं और यम को मृत्यु लोक मिला कहा जाता है की जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है. किदवंति है की यमुना ने अपने भाई से भाईदूज के अवसर पर वरदान मांगा कि इस दिन जो यमुना स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े इस अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है.


सप्तर्षि कुण्ड :

यमुनोत्री में स्थित ग्लेशियर और गर्म पानी के कुण्ड सभी के आकर्षण का केन्द्र है. यमुनोत्री नदी के उद्गम स्थल के पास ही महत्वपूर्ण जल के स्रोत हैं सप्तर्षि कुंड एवं सप्त सरोवर यह प्राकृतिक रुप से जल से परिपूर्ण होते हैं. यमुनोत्री का प्रमुख आकर्षण वहां गर्म जल के कुंड होना भी है. यहां पर आने वाले तीर्थयात्रीयों एवं श्रद्धालूओं के लिए इन गर्म जल के कुण्डों में स्नान करना बहुत महत्व रखता है यहां हनुमान, परशुराम, काली और एकादश रुद्र आदि के मन्दिर है.

सूर्य कुंड :

मंदिर के निकट पहाड़ की चट्टान के भीतर गर्म पानी का कुंड है जिसे सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. यह एक प्रमुख स्थल है यहां का जल इतना अधिक गरम होता है कि इसमें चावल से भरी पोटली डालने पर वह पक जाते हैं और यह उबले हुए चावल प्रसाद के रुप में तीर्थयत्रीयों में बांटे जाते हैं तथा इस प्रसाद को श्रद्धालुजन अपने साथ ले जाते हैं.

गौरी कुंड :

गौरी कुंड भी महत्वपूर्ण स्थल है यहां का जल का जल अधिक गर्म नहीं होता अत: इसी जल में तीर्थयात्री स्नान करते हैं. सभी यात्री स्नान के बाद सूर्य कुंड के पास स्थित दिव्य-शिला की पूजा-अर्चना करते हैं और उसके बाद यमुना नदी की पूजा की जाती है जिसका विशेष महत्व है. इसके नजदीक ही तप्तकुंड भी है परंपरा अनुसार इसमें स्नान के बाद श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाते हैं.

यमुनोत्री के धार्मिक महत्व के साथ ही मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह प्रकृति की अदभूत भेंट है. यमुनोत्री चढ़ाई  मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है. मार्ग में स्थित गगनचुंबीबर्फीली चोटियां सभी यात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं.



इसके आस-पास  देवदार और चीड़ के हरे-भरे घने जंगल ओर चारों तरफ फैला कोहरा और पहाड़ों के बीच बहती हुई यमुना नदी की शीतल धारा मन को मोह लेती है यह वातावरण आध्यात्मिक अनुभूति देने वाला एवं नैसर्गिक सौंदर्य से पूर्ण है. भारतीय  संस्कृति में यमुनोत्री को माता का रूप माना गया है यह नदी भारतीय सभ्यता को महत्वपूर्ण आयाम देती है.

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